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ख्वाब नींद से जुदा

Vineet Shukla
2024-03-04 03:09:55
नमस्कार मित्रोंमैं विनीत शुक्ला आपका इस चैनल में स्वागत करता हूंप्रस्तुत है मेरी आज की कविताख्वाब नींद से जुदा जुदासच से दूर खयाल मेरामौत की दुल्हन सजी हुईजीवन रण में भेज रहीफूल तिलक और दीपक सेसजा हुआ थाल मेरा।गुमसुम सी मिली एक सुबहमैंने पूछा चुप है क्यूँबोली मुझसे पूछ रहा, जो तुझसे सवाल मेराबेनाम ख्वाहिशें जब भी, मुझसे मिलने आतीं हैँदूर से ही सजदा करूँकह दूँ अच्छा हाल मेरासाँसों के धागों से, पल छिन पल छिन वक्त बुनापीछे मुड के देखा तो , खुद पे फेका जाल मेरारुई जैसा हल्का, यूँ तो ये जीवन थाखून पसीना आंसू, फिर उसपे ये खाल मेरानई तारीखों का हर दिन, एक ही जैसा रेहता थातू आया तो नया नया, तारीखों का साल मेराधन्यावादआपका विनीत

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